- नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई, CSE) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के पहले चार महीनों में देश में खराब मौसम की घटनाओं ने 233 लोगों की जान ले ली और 0.95 मिलियन हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचाया। चरम मौसमी घटनाओं ने अबकी बार 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रभावित किया, जबकि पिछले साल यह संख्या 27 थी। राजस्थान और महाराष्ट्र में सर्वाधिक (प्रत्येक में 30) चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गईं। इसके बाद हिमाचल प्रदेश में 28, बिहार और मध्य प्रदेश में 27-27 दर्ज हुईं। दिल्ली ने पिछले वर्ष की अवधि के दौरान 25 दिनों की तुलना में 12 दिनों में चरम मौसम देखने को मिला है।
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2022 में 86 लोगों की गई जान
रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी और अप्रैल 2022 के बीच, चरम मौसमी घटनाओं ने 86 लोगों की जान ले ली और 0.03 मिलियन हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचाया।
2022 में इसी अवधि के दौरान 35 दिनों की तुलना में इस बार 58 दिन बिजली और तूफान आए। इनमें से अधिकांश घटनाएं मार्च और अप्रैल में हुईं। देश ने पिछले साल के 40 दिनों की तुलना में 2023 के पहले चार महीनों में सिर्फ 15 दिन लू दर्ज की।
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पश्चिमी विक्षोभ की वजह से कम आती है लू
मौसम विज्ञानी लगातार कम लू के लिए पश्चिमी विक्षोभ को श्रेय देते हैं। पश्चिमी विक्षोभ जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं और मार्च-अप्रैल के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में बेमौसम बारिश लाते हैं।
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3000 से ज्यादा लोगों की जान गई
भारत ने 2022 में 365 दिनों में से 314 दिन चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया। घटनाओं ने 3,026 लोगों की जान ले ली और 1.96 मिलियन हेक्टेयर (हेक्टेयर) फसल क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया।
संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी, विश्व मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 1970 और 2021 के बीच चरम मौसम, जलवायु और पानी से संबंधित घटनाओं के कारण भारत में 573 आपदाएं हुईं, जिसमें 1,38,377 लोगों की जान गई।
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विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रह इसी तरह गर्म होता रहा तो समुद्री धाराओं की एक महत्वपूर्ण प्रणाली कुछ दशकों में ध्वस्त हो सकती है। यह दुनिया के मौसम के लिए विनाशकारी होगा और पृथ्वी पर मौजूद हर व्यक्ति इससे प्रभावित होगा। नेचर जर्नल में मंगलवार को प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया कि अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग करंट (AMOC) जिसका गल्फ स्ट्रीम एक हिस्सा है सदी के मध्य में या जल्द से जल्द 2025 की शुरुआत में ढह सकता है।
जलवायु संकट (Global Warming) के तेज होने के कारण वैज्ञानिक वर्षों से इसकी अस्थिरता की चेतावनी देते रहे हैं। इन धाराओं की ताकत तापमान और खारेपन पर निर्भर करती है, लेकिन संतुलन बिगड़ने से इन्हें खतरा होगा। जैसे-जैसे महासागर गर्म होते हैं और बर्फ पिघलती है, वैसे-वैसे साफ पानी समुद्र में मिलता है। इससे पानी का घनत्व कम हो जाता है, जिससे वह डूबने में कम सक्षम हो जाता है। जब पानी बहुत ताजा, बहुत गर्म या दोनों हो जाता है तो यह ‘कन्वेयर बेल्ट’ बंद हो जाता है।
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भारत में बारिश का क़हर : भारत में मौसम की भयावह घटनाएं प्रत्येक वर्ष नई ऊंचाएयां छू रही हैं
भारत में मौसम की भयावह घटनाओं में वृद्धि का पैमाना हर गुजरते साल के साथ नई ऊंचाई छू रहा है। साल 2023 की शुरुआत अगर सर्दी की जगह अधिक गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना रेकॉर्ड तोड़ दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक हो गई थी। उसी दौरान चक्रवात बिपरजॉय अरब सागर में 13 दिनों तक सक्रिय रहा और लगभग दो हफ्तों की इस सक्रियता के चलते साल 1977 के बाद सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बन गया। ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसून के पैटर्न में बदलाव से फर्क पड़ा है। भूमि और समुद्र दोनों के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे हवा में लंबे समय तक नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है। यह हालत सिर्फ़ भारत ही की नहीं हैं बल्कि पूरी दुनिया की कमोबेश यही स्थिति है।
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अमेरिका-यूरोप में भीषण गर्मी
जहां 22 मिलियन की आबादी वाला चीन के बीजिंग का शहर तापमान जून में 40 डिग्री सेल्सियस (104 फ़ारेनहाइट) से ऊपर रहा है। वहीं अमरीका में हीट वेव ने लोगों को तड़पा दिया। सोने पे सुहागा यह है कि कैनेडियन इंटर एजेंसी फॉरेस्ट फायर सेंटर (सीआईएफएफसी) के अनुसार, कनाडा में इस साल अब तक 2,392 बार जंगल में आग लगी हैं और 4.4 मिलियन हेक्टेयर का इलाका जल चुका है, जो पिछले दशक के वार्षिक औसत से लगभग 15 गुना अधिक है। उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों का तापमान इस महीने मौसमी औसत से लगभग 10 डिग्री सेल्सियस ऊपर था। जंगल की आग के धुएं ने कनाडा और अमेरिकी पूर्वी तट को खतरनाक धुंध में ढंक दिया, जिसमें रेकॉर्ड 160 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया था। स्पेन, ईरान और वियतनाम में भी अत्यधिक गर्मी दर्ज की गई है, जिससे यह भय बढ़ गया है कि पिछले साल की जानलेवा गर्मी आम घटना बन सकती है। इसके लिए विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।