भारत में भूस्खलन का कारण क्या है
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भारत में भूस्खलन का कारण बनने वाले 5 कारकों पर एक नज़र डालें
1. वनों की कटाई
भारत में भूस्खलन का एक प्रमुख कारण मानवीय हस्तक्षेप है। वनों की कटाई एक ऐसी घटना है जो भूस्खलन को ट्रिगर कर सकती है उदाहरण के लिए, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण हिमालय क्षेत्र भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है।
पेड़ों को हटाने से मिट्टी और चट्टानों के बंधनकारी गुण कम हो जाते हैं यह पानी को उप-सतह में रिसने में सक्षम बनाता है, जिससे ऊपरी मिट्टी कमजोर हो जाती है यहां तक कि जीएसआई ने भी पुष्टि की है कि पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में भूस्खलन का एक कारण वनों की बढ़ती कटाई है।
2. स्थानांतरण की खेती
जहां किसान दो या तीन मौसमों के लिए अस्थायी रूप से भूमि पर खेती करते हैं। फिर वे ज़मीन छोड़ देते हैं और उसे सब्ज़ियाँ स्वतंत्र रूप से उगने के लिए छोड़ देते हैं। इसके बाद किसान दूसरी जगह चले जाते हैं. जब मिट्टी की उर्वरता समाप्त हो जाती है या भूमि पर खरपतवार उग आते हैं तो वे उस स्थान को छोड़ देते हैं। खेती का समय आम तौर पर उस समय से कम होता है जब जमीन को उर्वरता पुनर्जीवित करने की अनुमति दी जाती है
पहाड़ी क्षेत्रों और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में स्थानान्तरित खेती आम है। हर साल, निवासी खेती के लिए जंगलों को जला देते हैं। हालाँकि, इससे ऊपरी मिट्टी की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है, जिससे भारी वर्षा के दौरान कटाव होता है। इससे ऐसे क्षेत्र भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
3. भारी वर्षा और भूकंप
हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि भारी बारिश और भूकंप के चलते नेपाल में मानसून के दौरान सामने आने वाले भूस्खलन के मामलों में छह गुना वृद्धि हो सकती है। गौरतलब है कि मानसून के मौसम में जून से अगस्त के बीच यह हिमालयी देश हर साल गंभीर भारी बारिश के चलते भूस्खलन का अनुभव करता है अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया था कैसे सामान्य मानसून की तुलना में भारी बारिश और भूकंप भूस्खलन को प्रभावित कर सकते हैं। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले 30 वर्षों (1988 – 2018) के बीच उपग्रहों से प्राप्त चित्रों और वर्षा सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। विश्लेषण से पता चला है कि 1993 और 2002 में बादल फटने के चलते औसत मानसून के मौसम की तुलना में भूस्खलन के मामलों में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई थी। इसी तरह अप्रैल 2015 के गोरखा भूकंप के कारण औसत मानसून की तुलना में अनुमान से छह गुना अधिक भूस्खलन सामने आए थे। यही नहीं इससे वहां के परिदृश्य को जो नुकसान पहुंचा था वो 2016 में संभावित औसत से कहीं ज्यादा भूस्खलनों की वजह बना था।
4. खुदाई
खनन या उत्खनन जैसी मानवीय गतिविधियाँ वनस्पति आवरण और मिट्टी की बजरी को हटा देती हैं। इससे भूजल धारण क्षमता कम हो जाती है साथ ही इससे बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए, भूस्खलन क्रमशः भूकंप और भारी वर्षा के दौरान ढीले मलबे या अत्यधिक बाढ़ के कारण होता है
5. शहरीकरण
शहरीकरण या नगरीकरण स्वयं के विकास करने का मानक माना जाता है। जब भारी संख्या में लोग गाँवों को छोड़कर शहरों की तरफ रुख करने लगते है, उसे ही शहरीकरण की उपमा दी गयी हैं। शहरीकरण का सबसे बड़ा साथी विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत भौतिक आराम की सुख-सुविधाएं है। जिसे देखकर अनायास ही व्यक्ति खींचा चला जाता है। और उसे पाने की चाहत में प्रयास करने लगता है।
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भूस्खलन के कारण
सामान्यतः भूस्खलन धीरे-धीरे होता है, फिर भी आकस्मिक रख्लन बिना चेतवनी के भी हो सकते है। भूस्खलन होने पर के बारे मे कोई पक्की चेतावनी मौजूद नही है। अतः भूस्खलन की आपदा घटने का पूर्वानुमान लगाना कठिन है। भूविज्ञान, विज्ञान, वनस्पति आच्छादन, क्षेत्र का पूर्व इतिहास और प्रभाव सम्बन्धी जानकारी का प्रयोग करके भूस्खलन की उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का पता लगाया जा सकता है। भूस्खलन के लिए प्रमुखतया भूकम्प, बाढ़ और चक्रवात की स्थितियां उत्तरदायी होती है। पहाड़ी क्षेत्र मे मानव द्वारा रास्तों के निर्माण करने अथवा कृषि के लिए खड़ी ढाल वाले क्षेत्र बनाना भी भूस्खलन को जन्म देता है।
पर्वतीय क्षेत्रों में जब भूकंप के तीव्र झटके आते है तो ढ़ालों की चट्टानों एवं मिट्टी खिसकने लगती है। यह अत्यधिक खतरनाक होती है। बाढ़ के प्रकोप के कारण कगारों की मिट्टी कमजोर हो जाती है जिससे मिट्टी चट्टानों के साथ खतरनाक होती है। बाढ़ के प्रकोप के कारण कगारों की मिट्टी कमजोर हो जाती है जिससे मिट्टी चट्टानों के साथ खिसकने लगती है। तीव्र चक्रवातों एवं झंझावतों का आना भी भूस्खलन को जन्म देता है