भारत में मोटे अनाज की बढ़ती मांग मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। ये सूक्ष्म पोषक तत्वों विटामिनों और खनिजों का भंडार हैं। छोटे बच्चों और प्रजजन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद होते हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटे अनाज बढ़िया विकल्प हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!भारत में अब क्यों बढ़ी रही है मोटे अनाजों की मांग
भारत कई कारणों से मोटे अनाजों पर अब ध्यान बढ़ा रहा है। बाजरा सूखा-प्रतिरोधी फसल है जिसे खराब मिट्टी और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। यह भारत के उन हिस्सों में एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत बन जाता है जहां अन्य फसलें नहीं उग सकती हैं। देश में वर्षा आधारित खेती ,कुल खेती का 60 प्रतिशत है। ऐसे इलाकों में मोटे अनाज की खेती से किसानों की निर्भरता सिंचाई के साधन और मानसून की अनियमितता पर कम हो सकती है।
आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया में मोटे अनाज का 5वां सबसे बड़ा निर्यातक है। साल 2021-22 में 64.28 मिलियन डालर मूल्य के मोटे अनाजों का निर्यात किया गया। पूरे एशिया में मोटे अनाज के उत्पादन में भारत का 80 फीसदी हिस्सा है।
साल 2022 में मोटे अनाज की पैदावार की बात करें तो भारत 19 प्रतिशत वैश्विक हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा उत्पादक था। उस साल भारत ने कुल 17.60 मिलियन मेट्रिक टन का उत्पादन किया, जिसमें 4.40 मिलियन मीट्रिक टन ज्वार और बाकी 13.20 मिलियन टन दूसरे मोटे अनाज थे। पूरे विश्व में कुल मोटे अनाज के उत्पादन का 66 फीसदी ज्वार और बाकी 34 फीसदी में दूसरे मोटे अनाज आते हैं। मोटे अनाज की खेती ज्यादातर एशियाई और अफ्रीकी देशों में होती है जिनमें भारत, चीन , नाइजीरिया, माली देश में सबसे अधिक उत्पादन होता है। जबकि मोटे अनाज की खपत साल 2022 में दुनिया में 90.43 मिलियन मीट्रिक टन थी। जिसमें सबसे अधिक खपत 17.75 मिलियन मीट्रिक टन भारत और उसके बाद 13.70 मिलियन मेट्रिक टन चीन में हुई।
मोटे अनाज: भारत में मोटे अनाज की बढ़ती मांग
- परिचय:
- मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।
- कृषि-जलवायु क्षेत्र, फसलों और किस्मों की एक निश्चित श्रेणी के लिये उपयुक्त प्रमुख जलवायु के संदर्भ में भूमि की एक इकाई है।
- ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर (Finger) बाजरा और अन्य कुटकी (Small Millets) जैसे कोदो (Kodo), फॉक्सटेल (Foxtail) , प्रोसो (Proso) और बार्नयार्ड (Barnyard) एक साथ मोटे अनाज कहलाते हैं।
- ज्वार, बाजरा, मक्का और छोटे बाजरा (बार्नयार्ड बाजरा, प्रोसो बाजरा, कोदो बाजरा और फॉक्सटेल बाजरा) को पोषक-अनाज भी कहा जाता है।
- मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।
- महत्त्व:
- मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिये जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएँ विद्यमान होती हैं।
- ये फसलें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में और एक आशाजनक निर्यात योग्य वस्तु के रूप में भी अच्छी संभावनाएँ प्रदान करती हैं।
- मानव उपभोग के लिये भोजन, पशु और मुर्गीयों के लिये चारा और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिये सूखा प्रवण क्षेत्रों में उनकी खेती, ईंधन और औद्योगिक उपयोग के रूप में इनका उपयोग सामान्य है।
- उनका पौष्टिक मूल्य कुपोषण से निपटने के लिये एक उत्कृष्ट उपकरण के रूप में कार्य करता है।
- यह अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में रोज़गार-सृजन में सहायता करता है, जहाँ अन्य वैकल्पिक फसलें सीमित हैं और इन फसलों का उपयोग आकस्मिक फसल के रूप में किया जाता है।
- मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिये जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएँ विद्यमान होती हैं।
- मोटे अनाज उत्पादक राज्य:
- कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि।
- मोटे अनाज के उपयोग:
- चारा:
- कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्वार और बाजरा की खेती मुख्य रूप से चारे के उद्देश्य से की जाती है।
- औद्योगिक उत्पाद:
- चारा: माल्टिंग, उच्च फ्रुक्टोज सिरप, स्टार्च, गुड़, बेकरी आदि में उपयोग किया जाता है।
- बाजरा: शराब बनाने/माल्टिंग, स्टार्च, बेकरी, पोल्ट्री और पशु आहार में प्रयुक्त।
- मक्का: शराब बनाने, स्टार्च, बेकरी, मुर्गी पालन और पशु चारा, जैव-ईंधन में उपयोग किया जाता है।
- चारा/फीड का स्रोत (Source of Feed):
- पशुओं के लिये मोटे अनाज और पोल्ट्री फीड की मांग बढ़ रही है।
- भारत में चारा की आवश्यकताएँ सामान्य रूप से बेकार अनाज से पूरी की जाती हैं और विशेष रूप से मोटे अनाज से बनाई जाती हैं।
- पोल्ट्री फीड में मक्का आवश्यक कार्बोहाइड्रेट स्रोत है।
- चारा:
मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। ये सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिनों और खनिजों का भंडार हैं। छोटे बच्चों और प्रजजन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद होते हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटे अनाज बढ़िया विकल्प हैं। इनकी खेती भी किफायती होती है, जिसमें ज्यादा देखभाल नहीं करनी पड़ती। इनका भंडारण भी आसान है। अतीत में मोटे अनाज हमारी थाली का एक प्रमुख हिस्सा हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल के दौर में मोटे अनाज लगातार उपेक्षित होते गए। स्थिति यह हो गई है कि हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाजों की हिस्सेदारी अब सिमटकर 10 प्रतिशत से भी कम रह गई है। वैसे, एशिया और अफ्रीका ही मोटे अनाज के प्रमुख उत्पादन और खपत केंद्र हैं। भारत, सूडान और नाइजीरिया इनके प्रमुख उत्पादक हैं। दुनिया में मोटे अनाजों के उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत अभी भी भारत में होता है।
मोदी सरकार ने मोटे अनाजों को मुख्यधारा में लाने के लिए तमाम प्रयास किए हैं। विशेषकर अप्रैल 2018 से सरकार मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में अच्छी-खासी वृद्धि की है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मिलेट के लिए पोषक अनाज घटक 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है। भारत के अधिकांश राज्यों में एक या एक से अधिक मोटे अनाज की प्रजातियां उगाई जाती हैं। राज्यों को विशेष रियायतें दी गई हैं। इसमें तीन महीने के भीतर इन अनाजों के वितरण की अनिवार्यता को समाप्त कर इसे छह से 10 महीने कर दिया गया है। केंद्रीय पूल में इन अनाजों की खरीद का लक्ष्य 2021 के 6.5 लाख टन से बढ़ाकर 2022 में 13 लाख टन किया है। चालू खरीफ सत्र में ही 30 नवंबर तक हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु में इस निर्धारित लक्ष्य से अधिक की खरीद हो गई। चालू फसल वर्ष के दौरान 2.88 करोड़ टन मोटे अनाज के उत्पादन का लक्ष्य है और यह लक्ष्य प्राप्त होता भी दिख रहा है।