विश्व मरुस्थलीकरण दिवस 2023 : विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस प्रत्येक वर्ष 17 जून को मनाया जाता है।
- इस वर्ष की थीम है “उसकी भूमि। उसके अधिकार (Her Land. Her Rights)” जो महिलाओं के भूमि अधिकारों पर केंद्रित है तथा वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता और भूमि क्षरण तटस्थता के परस्पर वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने एवं कई अन्य सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) की उन्नति में योगदान देने हेतु आवश्यक है।
विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस: विश्व मरुस्थलीकरण दिवस 2023
- पृष्ठभूमि:
- मरुस्थलीकरण को जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के क्षति के साथ ही वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान सतत् विकास हेतु सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में पहचाना गया।
- दो वर्ष बाद वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) की स्थापना की, जो पर्यावरण एवं विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता था तथा 17 जून को “विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस” घोषित किया गया।
- बाद में वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2010-2020 को UNCCD सचिवालय के नेतृत्व में भूमि क्षरण रोकथाम हेतु वैश्विक कार्रवाई को गति देने के लिये मरुस्थलीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्र दशक एवं मरुस्थलीकरण रोकथाम की घोषणा की।
- संबोधित मुद्दे:
- भूमि पर महिलाओं का नियंत्रण महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि उनके पास अक्सर अधिकारों की कमी होती है एवं उन्हें विश्व भर में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। यह उनकी भलाई एवं समृद्धि को सीमित करता है, विशेषकर जब भूमि क्षरण तथा जल की कमी होती है।
- भूमि तक महिलाओं की पहुँच सुनिश्चित करने का अर्थ है कि यह भविष्य के लिये महिलाओं और मानवता के हित में है।
- महिलाओं और बालिकाओं के पास अक्सर भूमि संसाधनों तक पहुँच और नियंत्रण नहीं होने के कारण मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण एवं सूखा का उन पर असमान रूप से प्रभाव पड़ता है। कम कृषीय उपज और जल की कमी सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाले कारक हैं।
- अधिकांश देशों में महिलाएँ भूमि तक असमान और सीमित पहुँच एवं नियंत्रण की समस्या से जूझ रही हैं। कई जगहों पर महिलाएँ भेदभावपूर्ण कानूनों तथा प्रथाओं के अधीन हैं, जो विरासत के उनके अधिकार के साथ-साथ सेवाओं और संसाधनों तक उनकी पहुँच को बाधित करते हैं।
- भूमि पर महिलाओं का नियंत्रण महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि उनके पास अक्सर अधिकारों की कमी होती है एवं उन्हें विश्व भर में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। यह उनकी भलाई एवं समृद्धि को सीमित करता है, विशेषकर जब भूमि क्षरण तथा जल की कमी होती है।
- लैंगिक समानता: एक अपूर्ण लक्ष्य:
- UNCCD के एक प्रमुख अध्ययन “द डिफरेंशिएटेड इम्पैक्ट्स ऑफ डेज़र्टिफिकेशन, लैंड डिग्रेडेशन एंड ड्रॉट ऑन वीमेन एंड मेन” के अनुसार, विश्व के लगभग हर हिस्से में लैंगिक समानता का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है।
- वर्तमान में वैश्विक कृषि कार्यबल का लगभग आधा हिस्सा महिलाएँ हैं, फिर भी विश्व भर में पाँच भूमिधारकों में महिलाओं की संख्या एक से भी कम है।
- प्रथागत, धार्मिक, या पारंपरिक नियमों और प्रथाओं के तहत 100 से भी अधिक ऐसे देश हैं जहाँ महिलाएँ अपने पति की संपत्ति को प्राप्त करने के अधिकार से वंचित हैं।
- विश्व स्तर पर महिलाएँ प्रतिदिन सामूहिक रूप से 200 मिलियन घंटे जल का प्रबंध करने में लगाती हैं। कुछ देशों में एक बार जल लाने के लिये आने-जाने में एक घंटे से भी अधिक समय लग जाता है।
- UNCCD के एक प्रमुख अध्ययन “द डिफरेंशिएटेड इम्पैक्ट्स ऑफ डेज़र्टिफिकेशन, लैंड डिग्रेडेशन एंड ड्रॉट ऑन वीमेन एंड मेन” के अनुसार, विश्व के लगभग हर हिस्से में लैंगिक समानता का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है।
- शुरू की गई पहलें और सुझाव:
- वैश्विक अभियान:
- भागीदारों, प्रभावशाली व्यक्तित्वों के साथ मिलकर UNCCD ने महिलाओं और बालिकाओं द्वारा स्थायी भूमि प्रबंधन में उत्कृष्टता, उनके नेतृत्व और प्रयासों को मान्यता देने के लिये एक वैश्विक अभियान की शुरुआत की है।
- सुझाव:
- सरकारें भेदभाव को समाप्त करने और भूमि तथा संसाधनों पर महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने वाले कानूनों, नीतियों एवं प्रथाओं को बढ़ावा दे सकती हैं।
- व्यवसाय क्षेत्र महिलाओं और लड़कियों को अपने निवेश में प्राथमिकता दे कर वित्त एवं प्रौद्योगिकी तक पहुँच की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
- भूमि को पुनर्स्थापित करने वाली महिला-नेतृत्व वाली पहलों का समर्थन किया जा सकता है।
- वैश्विक अभियान:
मरुस्थलीकरण में कमी के लिये संबंधित पहल:
- भारतीय पहल:
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम, 2009-10:
- यह भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवेश में रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण एवं विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है।
- मरुस्थल विकास कार्यक्रम:
- इसे वर्ष 1995 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और चिह्नित रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को पुनः जीवंत करने हेतु शुरू किया गया था।
- राष्ट्रीय हरित भारत मिशन:
- इसे वर्ष 2014 में अनुमोदित किया गया था तथा 10 वर्ष की समय-सीमा के साथ भारत के घटते वन आवरण के संरक्षण, बहाली एवं वृद्धि के उद्देश्य से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत लागू किया गया था।
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम, 2009-10:
- वैश्विक पहल:
- बॉन चैलेंज:
- बॉन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया की 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
- पेरिस में UNFCCC कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) 2015 में भारत भी वर्ष 2030 तक 21 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने के लिये स्वैच्छिक बॉन चैलेंज प्रतिज्ञा में शामिल हुआ।
- वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने के लिये अब लक्ष्य को संशोधित किया गया है।
- बॉन चैलेंज: