भोपाल गैस त्रासदी का स्वास्थ्य पर प्रभाव
- June 17, 2023
- Posted by: Akarias
- Category: Blog
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चर्चा में क्यों?
वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी, जिसे विश्व की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है, भविष्य की पीढ़ियों के स्वास्थ्य को लंबे समय तक प्रभावित करती रहेगी। इसके अंतर्गत उन लोगों को भी शामिल किया जा सकता है जो ज़हरीली गैस के सीधे संपर्क में नहीं आए थे।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!- हालिया अध्ययन ने इस त्रासदी के दशकों बाद भी दिव्यांगों और कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा लगातार सामना किये जाने वाले स्वास्थ्य मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
शोध के प्रमुख बिंदु: भोपाल गैस त्रासदी
- परिचय: अध्ययन से पता चलता है कि भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव तत्काल मृत्यु और बीमारी से कहीं अधिक है। यह पाया गया है कि भोपाल के आसपास के 100 किमी. के दायरे में इसका प्रभाव देखा जा रहा है। यह पहले निर्धारित क्षेत्र से अधिक व्यापक क्षेत्र को प्रभावित कर रही है।
- आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले इस त्रासदी के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया है जो इस आपदा/त्रासदी के सामाजिक प्रभावों को उजागर करती है।
- त्रासदी में बचे लोगों/उत्तरजीवियों द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ: भोपाल गैस त्रासदी के उत्तरजीवियों को वर्षों से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इनमें श्वसन संबंधी, न्यूरोलॉजिकल, मस्कुलोस्केलेटल, नेत्र संबंधी और अंतःस्रावी समस्याएँ शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त ज़हरीली गैस के संपर्क में आने वाली महिलाओं में गर्भपात, मृत जन्म, नवजात मृत्यु दर, मासिक धर्म संबंधी असामान्यताएँ और समय से पहले रजोनिवृत्ति में वृद्धि देखने को मिली है।
- दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों की जाँच: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (UC) के शोधकर्त्ताओं ने भोपाल गैस त्रासदी के दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों और संभावित पीढ़ीगत प्रभावों का आकलन करने के लिये एक व्यापक विश्लेषण और अध्ययन किया।
- उन्होंने वर्ष 2015 और 2016 के बीच किये गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) तथा वर्ष 1999 के लिये भारत से एकीकृत सार्वजनिक उपयोग माइक्रोडेटा शृंखला से आँकड़े एकत्र किये, जिसमें आपदा के समय छह से 64 वर्ष की आयु के व्यक्ति एवं गर्भावस्था काल से गुज़र रहे लोग शामिल थे।
- महिलाओं में विकलांगता: जो महिलाएँ पुरुष भ्रूण के साथ गर्भवती थीं और भोपाल के 100 किलोमीटर के दायरे में रहती थीं, उनमें विकलांगता दर एक प्रतिशत अधिक थी जिसने 15 साल बाद उनके रोज़गार को प्रभावित किया।
- पुरुष जन्म में गिरावट: भोपाल के 100 किमी. के दायरे में रहने वाली माताओं के बीच पुरुष जन्म के अनुपात में 64% (1981-1984) से 60% (1985) तक की गिरावट आई थी जो पुरुष भ्रूण की उच्च भेद्यता को इंगित करता है।
- 100 किमी. के दायरे से बाहर कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं देखा गया।
- कैंसर का अधिक जोखिम: भोपाल के 100 किमी. के दायरे में वर्ष 1985 में पैदा हुए पुरुषों में 1976-1984 और 1986-1990 की अवधि में पैदा हुए लोगों की तुलना में कैंसर होने का आठ गुना अधिक जोखिम था।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 1985 में पैदा हुए पुरुष जो भोपाल के 100 किमी. के दायरे में रहते थे, उन्होंने पैदा हुए अपने समकक्षों और 100 किमी. से अधिक दूर रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में वर्ष 2015 में कैंसर के 27 गुना अधिक जोखिम का अनुभव किया।
- रोजगार अक्षमताएँ: त्रासदी के दौरान जो लोग गर्भ में थे और भोपाल के 100 किमी. के दायरे में थे, उनमें अन्य व्यक्तियों और भोपाल से दूर रहने वालों की तुलना में रोज़गार अक्षमता की संभावना एक प्रतिशत अधिक थी।
- यह संभावना शहर के 50 किमी. के दायरे में रहने वालों के बीच बढ़कर दो प्रतिशत हो गई थी।
भोपाल गैस त्रासदी:
- परिचय:
- भोपाल गैस त्रासदी इतिहास में सबसे गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी जो 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल, मध्य प्रदेश में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) कीटनाशक संयंत्र में हुई थी।
- इसने लोगों और पशुओं को अत्यधिक ज़हरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के संपर्क में ला दिया जिससे तत्काल मौतें तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव देखे गए।
- गैस रिसाव का कारण:
- गैस रिसाव का सटीक कारण अभी भी कॉर्पोरेट लापरवाही या कर्मचारियों की अनदेखी के बीच विवादित है। हालाँकि आपदा में योगदान देने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं:
- UCIL संयंत्र में खराब रखरखाव वाले टैंकों में बड़ी मात्रा में MIC का भंडारण किया जा रहा था जो अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और वाष्पशील रसायन है।
- वित्तीय घाटे और बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा के कारण संयंत्र कम कर्मचारियों और सुरक्षा मानकों के साथ काम कर रहा था।
- संयंत्र घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित था, जहाँ आस-पास के निवासियों हेतु कोई उचित आपातकालीन योजना या चेतावनी प्रणाली नहीं थी।
- आपदा की रात जल की बड़ी मात्रा MIC भंडारण टैंक (E610) ( संभवतः दोषपूर्ण वाल्व या असंतुष्ट कार्यकर्त्ता द्वारा जान-बूझकर की गई तोड़फोड़ की वजह से) में से एक में प्रवेश कर गई।
- इसने ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया को उत्प्रेरित किया और टैंक के अंदर तापमान एवं दबाव को बढ़ा दिया, जिससे वह फट गया और बड़ी मात्रा MIC गैस वातावरण में उत्सर्जित हो गई।
- गैस रिसाव का सटीक कारण अभी भी कॉर्पोरेट लापरवाही या कर्मचारियों की अनदेखी के बीच विवादित है। हालाँकि आपदा में योगदान देने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं:
- प्रतिक्रियाएँ:
- संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम-से-कम 30 टन ज़हरीली गैस ने 600,000 से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया है।
- इसने कहा कि यह आपदा “वर्ष 1919 के बाद दुनिया की प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं” में से एक थी।
- संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम-से-कम 30 टन ज़हरीली गैस ने 600,000 से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया है।
- पारित कानून:
- भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों का प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985: इसने केंद्र सरकार को दावों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के स्थान पर प्रतिनिधित्व करने और कार्य करने का “विशेष अधिकार” दिया।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इसने पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा हेतु प्रासंगिक उपाय करने एवं औद्योगिक गतिविधि को विनियमित करने के लिये केंद्र सरकार को अधिकृत किया।
- सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991: यह किसी खतरनाक पदार्थ के रखरखाव के दौरान होने वाली दुर्घटना से प्रभावित व्यक्तियों को तत्काल राहत प्रदान करने हेतु सार्वजनिक देयता बीमा प्रदान करता है।
- परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA): भारत ने वर्ष 2010 में CLNDA को परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों हेतु एक त्वरित मुआवज़ा तंत्र स्थापित करने के लिये अधिनियमित किया। यह परमाणु संयंत्र के संचालक पर सख्त एवं बिना किसी गलती के दायित्व का प्रावधान करता है, जहाँ उसे अपनी ओर से किसी भी अन्य बातों की परवाह किये बिना क्षति हेतु उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
भविष्य में औद्योगिक आपदाओं को रोकने हेतु उपाय:
- जोखिम मूल्यांकन तकनीकें: औद्योगिक प्रक्रियाओं में संभावित जोखिमों की पहचान करने और उनका आकलन करने हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग एवं भावी विश्लेषण जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- ये प्रौद्योगिकियाँ बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकती हैं और संभावित खतरों के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रदान कर सकती हैं, जिससे सक्रिय सुरक्षा उपायों को सक्षम किया जा सकता है।
- सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: उद्योगों, विशेष रूप से खतरनाक सामग्रियों से निपटने वाले उद्योगों को सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- इस तरह के आकलन में आस-पास के समुदायों, पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों के लिये संभावित जोखिमों पर विचार किया जाना चाहिये और औद्योगिक प्रक्रियाओं की योजना एवं डिज़ाइन में निवारक उपायों को शामिल करना चाहिये।
- सख्त प्रवर्तन: सरकारी अधिकारियों द्वारा सुरक्षा नियमों के सख्त प्रवर्तन को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- सुरक्षा मानकों के अनुपालन की निगरानी के लिये नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिये और उल्लंघन हेतु गंभीर दंड लगाया जाना चाहिये।