ICMR : प्री-डायबिटीज़ जाँच
- June 13, 2023
- Posted by: Akarias
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चर्चा में क्यों? : ICMR
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा वित्तपोषित एक अध्ययन के अनुसार, पाँच स्वस्थ व्यक्तियों में से एक में प्री-डायबेटिक का ग्लूकोज़ चयापचय होता है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!- शोधकर्त्ताओं ने प्री-डायबिटीज़ का पता लगाने के लिये कंटीन्यूअस ग्लूकोज़ मॉनीटर्स (CGM) का उपयोग किया। निरंतर ग्लूकोज़ मॉनीटरिंग पूरे दिन और रात स्वचालित रूप से रक्त ग्लूकोज़ के स्तर को ट्रैक करती है, जो भोजन, शारीरिक गतिविधि और दवाओं को संतुलित करने के बारे में अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद कर सकती है।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:
- प्रसार:
- भारत में 101 मिलियन (11.4%) लोगों को डायबिटीज़/मधुमेह है और 136 मिलियन (15.3%) लोगों को प्री-डायबिटीज़ है।
- जब प्रीडायबिटीज़ के प्रचलन की बात आती है तो लगभग कोई ग्रामीण और शहरी विभाजन नहीं होता है।
- प्री-डायबिटीज़ का स्तर उन राज्यों में अधिक पाया गया जहाँ डायबिटीज़ का मौजूदा प्रसार कम था।
- रूपांतरण दर:
- भारत में प्री-डायबिटीज़ से डायबिटीज़ में परिवर्तन बहुत तेज़ी से हो रहा है। प्री-डायबिटीज़ से पीड़ित 60% से अधिक लोग अगले पाँच वर्षों में डायबिटीज़ में परिवर्तित हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त भारत की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। अतः यदि मधुमेह की व्यापकता 0.5 से लेकर 1% तक के बीच भी बढ़ती है, तो इसके रोगियों की संख्या काफी बड़ी होगी।
सुझाव: ICMR
- प्री-डायबिटीज़ की ट्रैकिंग:
- भारत में प्रीडायबिटीज़ के जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान पारंपरिक रूप से ओरल ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट पर निर्भर करती है। हालाँकि अध्ययन से पता चलता है कि प्री-डायबिटीज़ से पहले भी एक चरण होता है, जिसे इम्पेयर्ड ग्लूकोज़ होमोस्टेसिस कहा जाता है।
- ओरल ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट (OGTT):
- OGTT एक ऐसा परीक्षण है जिसकी सहायता से भोजन करने के बाद शरीर द्वारा ग्लूकोज़ के प्रबंधन की जाँच की जाती है।
- यह परीक्षण मधुमेह और प्री-डायबिटीज़ का निदान करने में मदद करता है।
- यदि फास्टिंग वैल्यू 126 mg/dl से ऊपर है और दो घंटे के उपवास के बाद की वैल्यू ओरल ग्लूकोज़ टोलेरेंस टेस्ट में 200 mg/l से ऊपर होती है, तो इसे मधुमेह के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- यदि फास्टिंग वैल्यू 100-125 के बीच है और दो घंटे की वैल्यू 140-199 के बीच है, तो रोगी को प्री-डायबिटिक चरण में वर्गीकृत किया जाता है। इसमें सामान्य के रूप से 100 से नीचे की वैल्यू तथा 140 से कम के दो घंटे की वैल्यू को चिह्नित किया गया है।
प्रारंभिक पहचान का महत्त्व:
- मधुमेह (डायबिटीज़) का शीघ्र पता लगाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समय पर उपचार की अनुमति देता है और स्वास्थ जोखिम को कम करता है। हालाँकि CGM की लागत भारत में एक चुनौती है, जहाँ अनेक प्री-डायबिटीज़ रोगियों को आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
- जबकि CGM पोषण और शर्करा के स्तर में सुधार कर सकते हैं लेकिन इसकी क्षमता एक चिंता का विषय है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मधुमेह वाले 50% से अधिक व्यक्ति अपनी स्थिति से अनजान हैं, यह सुलभ और लागत प्रभावी जाँच विधियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
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मधुमेह (डायबिटीज़):
- परिचय:
- डायबिटीज़ एक गैर-संचारी (Non-Communicable Disease) रोग है जो किसी व्यक्ति में तब पाया जाता है जब मानव अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन (एक हार्मोन जो रक्त शर्करा या ग्लूकोज़ को नियंत्रित करता है) का उत्पादन नहीं करता है या जब शरीर प्रभावी रूप से उत्पादित इंसुलिन का उपयोग करने में असफल रहता है।
- डायबिटीज़ के प्रकार:
- टाइप (Type)-1:
- इसे ‘किशोर-मधुमेह’ के रूप में भी जाना जाता है (क्योंकि यह ज़्यादातर 14-16 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है), टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है।
- इंसुलिन एक हार्मोन है जिसका उपयोग शरीर ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु शर्करा (ग्लूकोज) को कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिये करता है।
- यह मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों में पाया जाता है। हालांँकि इसका प्रसार कम है और टाइप-2 की तुलना में बहुत अधिक गंभीर है।
- इसे ‘किशोर-मधुमेह’ के रूप में भी जाना जाता है (क्योंकि यह ज़्यादातर 14-16 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है), टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है।
- टाइप (Type)-2:
- यह शरीर के इंसुलिन का उपयोग करने के तरीके को प्रभावित करता है, जबकि शरीर अभी भी इंसुलिन निर्माण कर रहा होता है।
- टाइप-2 डायबिटीज़ या मधुमेह किसी भी उम्र में हो सकता है, यहांँ तक कि बचपन में भी। हालांँकि मधुमेह का यह प्रकार ज़्यादातर मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध लोगों में पाया जाता है।
- गर्भावस्था के दौरान मधुमेह:
- यह गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में तब होता है जब कभी-कभी गर्भावस्था के कारण शरीर अग्न्याशय में बनने वाले इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। गर्भकालीन मधुमेह सभी महिलाओं में नहीं पाया जाता है और आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या दूर हो जाती है।
- टाइप (Type)-1:
- डायबिटीज़ के प्रभाव:
- लंबे समय तक बगैर उपचार या सही रोकथाम न होने पर मधुमेह गुर्दे, हृदय, रक्त वाहिकाएँ, तंत्रिका तंत्र और आँखें (रेटिना) आदि से संबंधित रोगों का कारण बनता है।
- ज़िम्मेदार कारक:
- मधुमेह में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारक हैं- अस्वस्थ आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, शराब का अत्यधिक सेवन, अधिक वज़न/मोटापा, तंबाकू का उपयोग आदि।