अध्यादेशों का प्रख्यापन और पुन: प्रख्यापन
- May 26, 2023
- Posted by: Akarias
- Category: Blog
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Territory- NCT) में दिल्ली के उपराज्यपाल को सेवाओं के संदर्भ में अधिकार देते हुए अध्यादेश जारी या प्रख्यापित किया है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!- इस अध्यादेश के तहत “राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण” की स्थापना की गई जिसमें मुख्यमंत्री और दो वरिष्ठ IAS अधिकारी शामिल हैं, जो उन्हें बहुमत के माध्यम से मामलों को तय करने का अधिकार प्रदान करता है।
- आलोचकों का तर्क है कि यह कदम प्रभावी रूप से ऐसी स्थिति उत्पन्न करता है जहाँ निर्वाचित मुख्यमंत्री के विचारों को संभावित रूप से खारिज किया जा सकता है।
भारतीय राजनीति में अध्यादेश:
- परिचय:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 123 जब संसद के दोनों सदनों में से कोई भी अत्यावश्यक परिस्थितियों में सत्र में नहीं होता है तो राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने हेतु कानून बनाने की कुछ शक्तियाँ प्रदान करता है।
- इसलिये संसद द्वारा अध्यादेश जारी करना संभव नहीं है।
- जब अध्यादेश प्रख्यापित किया जाता है लेकिन विधायी सत्र अभी शुरू नहीं हुआ है, तो अध्यादेश कानून के रूप में प्रभावी रहता है। इसकी वही शक्ति एवं प्रभाव है जो विधायिका के अधिनियम का होता है।
- लेकिन इसके पुन: प्रख्यापन के छह सप्ताह के भीतर संसद द्वारा अनुसमर्थन आवश्यक होता है।
- राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश की वैधता इसके प्रख्यापन की तारीख से छह सप्ताह और अधिकतम छह महीने तक होती है।
- किसी राज्य का राज्यपाल भी राज्य में विधानसभा सत्र न होने की स्थिति में भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है।
- यदि दोनों सदन अलग-अलग तिथियों पर अपना सत्र शुरू करते हैं, तो बाद की तारीख पर विचार किया जाता है (अनुच्छेद 123 और 213)।
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 123 जब संसद के दोनों सदनों में से कोई भी अत्यावश्यक परिस्थितियों में सत्र में नहीं होता है तो राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने हेतु कानून बनाने की कुछ शक्तियाँ प्रदान करता है।
- अधिनियमन:
- अध्यादेश बनाने की प्रक्रिया में अध्यादेश लाने का निर्णय सरकार के पास होता है, क्योंकि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है।
- यदि राष्ट्रपति आवश्यक समझे, तो वह मंत्रिमंडल की सिफारिश के लिये पुनर्विचार हेतु इसे वापस कर सकता है।
- हालाँकि यदि इसे वापस (पुनर्विचार के साथ या बिना) भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति को इसे प्रख्यापित करना होता है।
- अध्यादेश बनाने की प्रक्रिया में अध्यादेश लाने का निर्णय सरकार के पास होता है, क्योंकि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है।
- अध्यादेश की वापसी:
- किसी संभावित कमी के कारण राष्ट्रपति एक अध्यादेश को वापस ले सकता है और संसद के दोनों सदन इसे अस्वीकार करने के लिये संकल्प पारित कर सकते हैं। हालाँकि एक अध्यादेश की अस्वीकृति का अर्थ यह होगा कि सरकार ने बहुमत खो दिया है।
- हालाँकि यदि कोई अध्यादेश संसद की क्षमता के दायरे से बाहर कानून बनाता है, तो इसे शून्य माना जाता है।
- किसी संभावित कमी के कारण राष्ट्रपति एक अध्यादेश को वापस ले सकता है और संसद के दोनों सदन इसे अस्वीकार करने के लिये संकल्प पारित कर सकते हैं। हालाँकि एक अध्यादेश की अस्वीकृति का अर्थ यह होगा कि सरकार ने बहुमत खो दिया है।
- अध्यादेश का पुन: प्रख्यापन:
- जब कोई अध्यादेश समाप्त हो जाता है, तो सरकार आवश्यकता पड़ने पर इसे फिर से प्रख्यापित करने का विकल्प चुन सकती है।
- वर्ष 2017 के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि विधायी विचार के बिना बार-बार पुन: प्रचार करना असंवैधानिक होगा और विधायिका की भूमिका का उल्लंघन होगा।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अध्यादेश जारी करने की शक्ति को एक आपातकालीन उपाय के रूप में माना जाना चाहिये, न कि विधायिका को बायपास करने के साधन के रूप में।