खाद्य तेल की कीमतें एवं भारत के लिये महत्त्व
- May 24, 2023
- Posted by: Akarias
- Category: Blog
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चर्चा में क्यों?
खाद्य तेलों के संदर्भ में पिछले 2-3 वर्षों में गंभीर मूल्य अस्थिरता का अनुभव किया गया है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!- संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (UN Food and Agriculture Organization) के वैश्विक वनस्पति तेल मूल्य सूचकांक ने मई 2020 में वैश्विक कोविड लॉकडाउन के चरम के दौरान 77.8 अंक (वर्ष 2014-16 आधार अवधि मूल्य = 100) की गंभीर गिरावट का अनुभव किया। हालाँकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद मार्च 2022 में यह 251.8 अंकों के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
खाद्य तेल की कीमत में अस्थिरता के कारक:
- यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष के दौरान काला सागर बंदरगाह के बंद होने के कारण विश्व भर में इस तिलहन की आपूर्ति बाधित हुई थी।
- वर्ष 2021-22 में यूक्रेन और रूस का वैश्विक उत्पादन में लगभग 58% हिस्सा था, अतः संघर्ष के परिणामस्वरूप कीमतों में व्यापक वृद्धि देखी गई।
- संयुक्त राष्ट्र और तुर्किये की मध्यस्थता से रूस एवं यूक्रेन के बीच ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव समझौते के साथ स्थिति में बदलाव आया। इस समझौते ने यूक्रेनी बंदरगाहों से अनाज एवं खाद्य पदार्थों को ले जाने वाले जहाज़ों के सुरक्षित नेविगेशन की सुविधा प्रदान की।
- इससे यूक्रेन से संचित सूरजमुखी तेल, भोजन और बीज का निर्यात किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय वनस्पति तेल की कीमतें युद्ध-पूर्व स्तरों से नीचे गिर गईं।
भारत के संदर्भ में इसका प्रभाव:
- लागत में कमी:
- भारत में सूरजमुखी के तेल के आयात से देश में खाद्य तेलों की कीमतों में काफी कमी आने की संभावना है। सूरजमुखी के तेल का आयात, जिसकी आयातित लागत लगभग 950 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है, कर भारत में खाद्य तेलों की कुल लागत को कम किया जा सकता है।
- उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
- जब कीमतें बढ़ गईं तो कई घरों और संस्थागत उपभोक्ताओं जैसे- रेस्तराँ एवं कैंटीन में सूरजमुखी के तेल से सोयाबीन तेल या स्थानीय तेलों जैसे अपेक्षाकृत सस्ते विकल्पों की ओर संक्रमण किया।
- हालाँकि आयात प्रवाह और मूल्य समानता पूर्व की स्थिति में बहाल हो गई है, जिससे उपभोक्ता सूरजमुखी तेल के उपयोग पर ज़ोर दे रहे हैं।
- बाज़ार विस्तार:
- सूरजमुखी परंपरागत रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में उगाया जाता है।
- देश के सूरजमुखी तेल की कुल खपत का लगभग 70% की आपूर्ति दक्षिण भारत की जाती है, शेष खपत महाराष्ट्र (10-15%) और अन्य राज्यों में होती है।
- यह क्षेत्रीय संकेद्रता सूरजमुखी तेल के उत्पादों हेतु पर्याप्त बाज़ार प्रस्तुत करती है।
- सूरजमुखी परंपरागत रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में उगाया जाता है।
- मांग को पूरा करना:
- पिछले एक दशक में सूरजमुखी के तेल का घरेलू उत्पादन स्तर बहुत अधिक गिर गया है। यह गिरावट देश में सूरजमुखी तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये आयात के अवसर प्रदान करती है।
- घरेलू उत्पादन में गिरावट और कुछ क्षेत्रों में सूरजमुखी तेल को प्राथमिकता देना सूरजमुखी तेल के आयात की संभावना को बढ़ाती है। ब्रांडेड सूरजमुखी तेल के लिये बाज़ार की मांग को पूरा करने में आयातक और विक्रेता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
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भारत में खाद्य तेल की खपत का परिदृश्य:
- भारत सालाना 23.5-24 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत करता है, जिसमें से 13.5-14 मिलियन टन आयात किया जाता है और शेष 9.5-10 मिलियन टन का घरेलू उत्पादन करता है।
- सरसों का तेल (3-3.5 मिलियन टन), सोयाबीन तेल (4.5-5 मिलियन टन) और ताड़ का तेल (8-8.5 मिलियन टन) के बाद सूरजमुखी तेल (2-2.5 मिलियन टन) चौथा सबसे बड़ा खपत वाला खाद्य तेल है।
- सूरजमुखी और ताड़ के तेल दोनों का लगभग पूर्ण रूप से आयात किया जाता है, जिनका घरेलू उत्पादन मुश्किल से क्रमशः 50,000 टन और 0.3 मिलियन टन है।
- यह सरसों और सोयाबीन के विपरीत है, जहाँ घरेलू उत्पादन का हिस्सा क्रमशः 100% और 30-32% के करीब है।