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भारतीय ज्ञान परंपरा का जन्म मीमांसा और दर्शन के गर्भनाल से हुआ है जिसके मूल में है विज्ञान
- January 12, 2023
- Posted by: Pallavi Singh
- Category: Blog
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मीमांसा को परिभाषित करते समय ही महर्षि जैमिनी स्वयं छः प्रमाण की चर्चा करते है, सरलतम शब्दो मे समझे तो भारतीय ज्ञान में जो दर्शन परंपरा है उसी को साध्य मानकर अनुसंधान विज्ञान आज कर रहा है, उदहारन्नार्थ,, विज्ञान की २१वी सदी की सबसे बडी वैज्ञानिक खोज गॉड पार्टिकल भी तो महर्षि कणाद के सिद्धांत कण कण में ईश्वर है , उसी का अनुसरण और अनुपालन करता दिखा,, विज्ञान की वर्तमान में चुनौतियों का भारतीय परंपरा में निवारक निरोध शुरू से ही विद्यमान रहा है जैसे बुद्ध के अपरिग्रह का पालन करें तो समाज में भूखमरी, अतिसंचय , भ्रष्टाचार की समस्या का निराकरण हो जाए ,, यदि भारतीय ज्ञान परंपरा के सर्वेश्वरवाद (प्रकृति पूजा)का अनुपालन आज हो तो वर्तमान में विज्ञान की सबसे विकराल ग्लोबल वार्मिंग समस्या से निजात मिल जाए, वही यदि पतंजलि के प्रत्याहार का अनुपालान आज हो तो इंद्रियजनित समस्या से छुटकारा मिल सकता है, वही यदि समाज शिव के आदिरूप पशुपति का सच्चा साधक बन जाएं तो विज्ञान के बहुत से उपागम जो पशु संरक्षण में लगे है उनसे मुक्ति मिल जाएं,, यदि भारतीय दर्शन में विद्यमान निद्तमा की अवधारणा का अनुसरण हो तो विज्ञान नदियों के संरक्षण में भी सहज हो जायेगा। विज्ञान आवश्यकता जनित अनुसंधान करता है , जबकि दर्शन मिमांसा अनुकंपा स्वरूप में।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दर्शन का आयुध शब्द है-विचार,
अध्यात्म निरायुध होता है
सर्वथा स्तब्ध-निर्विचार!
एक ज्ञान है, विज्ञान भी
एक ध्यान है, ध्येय भी।