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अभ्यर्थी और आंतरिक संतुलन
- December 14, 2022
- Posted by: Uday Suryavanshi
- Category: Blog CRACK Exam IAS UPSE Prepare
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प्राय: ऐसा देखा गया है कि अभ्यर्थी अपने शैक्षणिक जीवन में अपने कार्यपद्धति अपने श्रमसाधना में स्वयं को लेकर आंतरिक रूप से असंतुलित होते हैं या फिर असंतुलित होने का अनुभव करते हैं।
आखिर आंतरिक संतुलन है क्या ?
यदि मैं एक शब्द *सुर* का जिक्र आपसे करू तो सुर को लेकर आपके मानस में दो शब्द प्रस्फुटित हुए होंगे,, पहला सुर अर्थात् देवता (सुर-असुर ) दुसरा सुर अर्थात् संगीत साधना के सुर ( सा रे गामा,,,,),, अब इन दोनो शब्दों की मीमांसा करिए,,, आखिर ये दोनो शब्द सार्थक कब है? ये तभी सार्थक हैं जब सन्तुलन में हों। संगीत का सुर जिसकी गणित संख्या तो आठ है किंतु यदि इन्हें सन्तुलन के सही अनुपात में समायोजित किया जाय तो आठ हजार क्या आठ लाख गीतों का जन्म इनसे मिलकर हुआ है, और सारा आकर्षण तो इस बात पर ही निर्भर है कि किन-किन सुरों को किस सुर के साथ कितने सन्तुलन के साथ कितने देर तक मिलाया जा रहा है,, अर्थात् जितना अच्छा सन्तुलन उतना अच्छा संगीत,,, दुसरा *सुर* देवता, देवता अर्थात् वो जिसके पास ये चमत्कारिक सामर्थ्य हो की वो जो चाहें विशिष्ट कर सकें,, विशिष्ट करने के लिए स्वयं में सन्तुलन होना चाहिए। क्योंकि जिस प्रकार आठ प्रकार के सुरों से मिलकर संगीत बनता है उसी तरह काव्य शास्त्र के अनुसार 9 तरह के रसों से मिलकर मनुष्य के स्वभाव का निर्माण होता है और जो भी मनुष्य अपने इन नौ रसों को समान संतुलन के साथ सामंजस्य बैठा लेता है वह देवता की श्रेणी में आ जाता है हमने भागवान बुद्ध, नानक आदि को अपने संतुलन की साधना के बल पर मनुष्य से देवता होते देखा भी है, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रकृति में जो कुछ भी सुंदर दिख रहा है वह अपने संतुलन के कारण ही है , कल्पना करिए यदि नैनो सेकंड के लिए पृथ्वी अपने अक्षीय सन्तुलन को खो दे तो मानवता का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा,,, कह सकते है पृथ्वी का सौन्दर्य उसके सन्तुलन में है,, ऐसे में यदि आपको सुख, दुख, हर्ष ,कष्ट ,आपदा और अवसर इन सब में स्वयं में संतुलन साधना नहीं आता है तो आपको जीवन हमेशा असंतुलित ही नजर आएगा क्योंकि हमारे जीवन का निर्माण ही इन्हीं मूल परिस्थितिजन्य अवयव से मिलकर हुआ है और फिर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी तो गीता में स्थितिप्रज्ञ रहने का ही उपदेश दिया था अर्थात् संतुलित रहने का उपदेश,, ऐसे में अभ्यर्थियों को यह बात अपने मानस में स्पष्ट बैठा लेनी चाहिए कि सफलता असफलता सापेक्षिक होती है शास्वत नहीं इसलिए दोनों ही परिस्थितियों में स्वयं को संतुलित रखना ही हमारा आंतरिक संतुलन है और हमारे जीवन की सफलता और हमारे जीवन का सौन्दर्य।